🌀 पोस्ट- 48  |  ✅ सच्ची हिकायत
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〽️ हजरत जाबीर (रजी अल्लाहु अन्हु) ने जंगे खंदक के दिनो हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के शिकमे अनवर पर पत्थर बंधा देखा तो घर आकर अपनी बिवी से कहा की क्या घर मे कुछ है ताकी हम हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के लिए कुछ पकाएं और हुजुर को खिलाए??

बिवी ने कहा: थोड़े पे जौ है और यह एक बकरी का छोटा बच्चा है। इसे जबह कर लेते हैं। आप हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) को बुला लाइये। चुकी वहां लश्कर बहुत ज्यादा है इसलिए हुजुर से पोशीदगी मे कहियेगा की वह अपने हमराह दस आदमियों से कुछ कम लाएँ।

जाबीर ने कहा : अच्छा तो लो मै इस बकरी के बच्चे को जबह करता हुँ तुम इसे पकाओ । मै हुजुर को बुला लाता हुँ।

चुनांचे:-
जाबीर हुजुर के खिदमत मे पहुंचे तो कान मे अर्ज किया हुजुर मेरे यहां तशरिफ ले चलिये और अपने साथ दस आदमियों से कुछ कम आदमी ले चलिये।

हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने सारे लश्कर को मुखातीब फरमाया: चलो मेरे साथ चलो । जाबीर ने
खाना पकाया है। फिर जाबीर के घर आकर हुजुर ने उस थोड़े से आटे मे अपना थुक मुबारक डाल दिया। फिर हुक्म दिया की अब रोटीयां और हंडिया पकाओ। चुनांचे उस थोड़े से आटे और गोश्त मे थुक मुबारक की बर्कत से इतनी बर्कत पैदा हो गयी की एक हजार आदमी खा गए मगर न रोटी कम हुई और न कोई बोटी।

📜 सच्ची हिकायत हिस्सा-अव्वल, हिकायत-15, पेज नम्बर-31


🌹 सबक ~
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यह हुजुर (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के थुक मुबारक की बर्कत थी कि थोड़े से खाने मे इतनी बर्कत पैदा हो गयी की हजार आदमी सैर शिकम होकर खा गए लेकीन खाना बदस्तुर वैसे का वैसा ही रहा कम न हुआ।

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🖌️पोस्ट क्रेडिट ~ मुहम्मद अरमान ग़ौस

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